What Is Switching Methods ?
switching एक ऐसा process है जिसमे डेटा या information [सूचना] को विभिन्न कंप्यूटर networks के मध्य भेजा जाता है.” Switching technology का इस्तेमाल बहुत बड़े networks में किया जाता है |
Types of switching methods (Techniques)
1. circuit switching [सर्किट स्विचिंग]
2. packet switching [पैकेट स्विचिंग]
3. message switching [मैसेज स्विचिंग]
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circuit switching
Circuit switching एक ऐसी switching technique है जिसमें दो या दो से अधिक devices के between point-to-point physical connection बनाया जाता है|
दूसरे शब्दों में कहें तो, circuit switching में sender तथा receiver के between एक physical connection established किया जाता है |
जब एक बार sender तथा receiver के between physical connection established हो जाता है तो सारा डेटा/सूचना इससे transmitted किया जाता है |
Example:- Telephone system, जिसमें sender तथा reciever physical connection (जैसे:-वायर) से जुड़े रहते है |
circuit switching में datagram तथा datastream दो प्रकार से data transmission होता है |
2. packet switching
packet switching में message को छोटे भागों में divided कर दिया जाता है, मैसेज के इन छोटे भागों को packets कहते है तथा each packets के पास अपना एक source तथा destination address होता है. तथा each पैकेट को इन address के आधार पर ही network में आगे transmitted किया जाता है.
जब सभी पैकेट्स destination पर पहुँच जाते है तो यह सभी फिर से original original मैसेज में बदल जाते है |
packet switching में network packets को FCFS (first come first serve) के आधार पर accept करता है अर्थात जो पैकेट पहले पहुँचता है उसे सबसे पहले serve किया जाता है |
Packet switching का प्रयोग circuit switching के alternative के तौर पर किया जाता है |
1:- datagram packet switching –
datagram packet switching में each packet को independent (स्वतंत्र) रूप से network में transmitted किया जाता है यानि एक पैकेट का दूसरे पैकेट के साथ कोई relation नहीं होता है. independent होने के कारण पैकेट को datagram कहते है |
इन packet के पास destination address होता है जिससे वह network में transmitted होते है |
datagram packet switching में packets independent होने के कारण ये अलग अलग मार्ग (route) से transmitted होते है जिससे packet disorganized तथा ख़राब तरीके से destination तक पहुँचते है |
Datagram packet switching जो है वह नेटवर्क लेयर में की जाती है |
datagram packet switching को connectionless पैकेट स्विचिंग भी कहते है |
2. virtual circuit packet switching |
इस प्रकार की पैकेट स्विचिंग में सेन्डर तथा रिसीवर के मध्य एक मार्ग (route) का चुनाव कर लिया जाता है और सभी पैकेट्स इस एक मार्ग से ट्रांसमिट कर दिए जाते है. एक मार्ग से ट्रांसमिट होने के कारण सभी पैकेट्स व्यवस्थित तथा सही ढंग से destination तक पहुँच जाते है |
इसमें प्रत्येक पैकेट को अपना एक नंबर दिया जाता है जिसे वर्चुअल सर्किट नंबर कहते है |
Virtual circuit switching डेटा लिंक लेयर में की जाती है |
Virtual circuit switching को connection oriented packet switching भी कहते है |
Advantage & disadvantage of packet switching
लाभ-
• यह नेटवर्क की बैंडविड्थ को व्यर्थ में व्यय होने से बचाता है. |
• डेटा पैकेट्स को आसानी से नेटवर्क में ट्रांसमिट कर सकते है क्योंकि पैकेट्स को अलग-अलग मार्ग से भेजा जा सकता है.
• उच्च डेटा को आसानी से भेज सकते है |
• टूटे हुए पैकेट्स या बिट्स को आसानी से हटा दिया जाता है |
• यह सुरक्षित है |
हानियाँ-
• ट्रांसमिशन में डेटा के corrupt होने के chances होते है तथा जिससे पूरा मैसेज अधूरा या गलत रिसीव हो सकता है.
• डेटा ट्रांसमिशन में देरी हो सकती है.
3- message switching
message switching में sender and the receiver के between किसी special path [मार्ग] को स्थापित करने की जरुरत नहीं होती है.
message switching में, जब कोई मैसेज भेजा जाता है तो उसके साथ उसका destination address भी होता है. इसमें मैसेज को एक नोड से दूसरे नोड में transmitted किया जाता है. जब नोड पूरा मैसेज प्राप्त कर लेता है तो वह उसे store कर लेता है तथा जब दूसरा नोड मैसेज को receive करने के लिए तैयार हो जाता है तो मैसेज को उसे forword कर देता है. इस कारण मैसेज switching को store – forward switching भी कहते है |
E-mail message switching system का एक उदाहरण है. तथा इस switching को सबसे पहले 1961 में proposedकिया गया था |
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